कार्यस्थल
पर आंतरिक शिकायत समिति का अस्तित्व नहीं होने के मायने क्या हैं ? क्या यह नियोक्ता के गैर जिम्मेदाराना कार्य व्यवहार को साबित नहीं करता
है जैसे कई सवाल पर यह लेख प्रकाश डाल रहा है
क्या
आप कामकाजी महिलाओं की व्यवहारिक सुरक्षा व्यवस्था बनाने के लिए आपका योगदान देना
चाहते है तो... ? इन तिन विचारणीय पहलुओं से विचार करिए १) आरटीआई आवेदन देकर बड़ा बदलाव लाइए
और पहल करिए २) शासकीय / गैर शासकीय कार्यालय के कार्य व्यवहार
में बदलाव लाने के लिए आपका अहम योगदान दीजिये ३)
आपकी लोकतांत्रिक भूमिका और शक्तियों का इस्तमाल करके आपका परिचय बढाइये क्योंकि
कामकाजी महिलायें अपने कार्य क्षेत्र पर आंतरिक शिकायत समिति के आभाव है जिसका
कारण निम्नानुसार है :-
शिकायत
निवारण की व्यवस्था का आभाव कार्यस्थल
के नियोक्ता द्वारा अपने संगठन में लैंगिक उत्पीड़न के निवारण की व्यवस्था नहीं
करना यह दिखाता है कि उस शासकीय विभाग या संगठन में लैंगिक उत्पीड़न को रोकने और
नियंत्रित करने के मुद्दे को विधि निर्देशानुसार मान्यता या महत्व नहीं दिया जा
रहा है और यह आपत्तिजनक कार्य व्यवहार इस बात की ओर इशारा करती है कि लैंगिक हिंसा
और भेदभाव के कार्य व्यवहार को करने की अप्रत्यक्ष रूप की सहमती नियोक्ता दे रहा
है ऐसी परिस्थिति को ध्यान न देना, पदेन कर्त्तव्यों की उपेक्षा किए जाने के रूप
में देखा जाना चाहिए उल्लेखनीय है कि, महिला सुरक्षा को उपेक्षित करने वाले को
उसका पदेन कर्तव्य आप याद दिला सकते हैं । कैसे
? प्रश्न पूछकर ?
----------------------------------------------------
महिला
सुरक्षा के प्रति गैर जिम्मेदाराना कार्य व्यवहार करने वाले नियोक्ता को कैसे
प्रश्न पूछे ? इसके लिए नीचे
आरटीआई आवेदन को कॉपी करके नियोक्ता कार्यालय में जमा करवाइए
पत्र क्रमांक
:-. दिनांक :-
प्रति,
श्रीमान जन
सूचना अधिकारी
कार्यालय
विषय :-
सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जानकारी अभिप्राप्त करने बाबत
संदर्भ :-
कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न ( निवारण, प्रतिषेध, और प्रतितोष ) अधिनियम 2013 की धारा 4 आंतरिक परिवाद समिति का गठन के विधि
निर्देशानुसार आपके कार्यालय में गठित की गई समिति तथा इसके कामकाज प्रक्रिया के
दस्तावेज
महोदय,
विषयांतर्गत निवेदन है कि, मैने सूचना अभिप्राप्त करने बाबत निर्धारित शुल्क 10 रु पोस्टल आर्डर /
नगद से अदा कर मूल पावती इस आवेदन के साथ संलग्न कर दिया है अतः अग्रलीखित जानकारी
दें ।
महिलाओं का
कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और
प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (2013 का अधिनियम संख्यांक 14 ) की
धारा 19 नियोक्ता के कर्तव्य के निर्देशों का अनुपालन कर धारा 4 के तहत आपके
कार्यालय में आंतरिक परिवाद समिति का गठन किए जाने के लिए जारी किया गया आदेश व
पदाधिकारियों / सदस्यों की सूची प्रदान करें और इस समिति के गठन कार्यवाही व
तदुप्रांत की गतिविधियों को लेखबद्घ किए जाने बाबत आपके कार्यालय में लिखी गई
समस्त नोटशीटो की छायाप्रति दें तथा इन नोटशीटों पर अभिलिखित कार्यवाहियों से
संबंधित दस्तावेजों को संधारित किए जाने बाबत आपके कार्यालय में बनाई गई मूल नस्ती
में संलग्न समस्त दस्तावेजों की छायाप्रति प्रदान करें ।
आवेदक का
नाम :
आवेदक का
मो नं :
आवेदक का
पता :
शिकायत
समिति के अभाव के दुष्परिणाम यह बात अब उजागर होने लगी है कि
औपचारिक तंत्र के अभाव की वजह से महिलाएं अकसर यौन उत्पीड़न की घटना के बारे में
बात करने या... सामने लाने से कतराती हैं।
इसके कई
कारण हैं :-
1 / घटना
को लेकर शर्मिंदगी और अपमान कि भावना महिलाओं घर कर जाती है ।
2 / इस बात का डर कि
घटना को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा ऐसे विचार से महिला दब जाती है |
3 / असुरक्षा की
भावना कामकाजी महिलाओं को भयभीत कर देती हैं ।
4 / महिलाओं चिंतित
हो जाती है कि, उनकी शिकायत का विश्वास नहीं किया जाएगा,
क्योंकि अक्सर घटना का कोई सबूत नहीं होता ।
5 / इस बात को लेकर
हिचकिचाहट कि संस्थान कोई कार्यवाई नहीं करेगा, अपराधी को
छोड़ दिया जाएगा। साथ ही यह डर भी कि उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति अगर दोषी भी पाया
गया तब भी पीड़ित व्यक्ति को ही नौकरी छोड़नी पड़ेगी या उल्टे उसी का तबादला कर
दिया जायेगा।
6 / अफवाहों का शिकार
होने का डर सबसे बड़ी मानसिक त्रासिदी बन जाती है ।
7 / उत्पीड़न को 'आमंत्रण' देने का आरोप लगने या फिर मुद्दे को उठाने
के लिए दोष दिए जाने का डर सुरक्षा के आभाव में सताता है ।
8 / सामाजिक
मान्यताओं का पालन करना जिनके तहत महिलाओं को चुप रहना और पुरूषों के 'बुरे बर्ताव' को सहन करना सिखाया जाता है।"
संक्षेप
में कहें तो महिलाओं को डर होता है कि अगर उन्होंने यौन उत्पीड़न के खिलाफ अपनी
आवाज उठाई तो उन्हें दो बार पीड़ित किया जाएगा पहले शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं
करके और दूसरी बार जब शिकायत को पुलिस थाने के हवाले करके व्यथित महिला को मानसिक
तनाव देकर पीड़ित किया जाता है।
----------------------------------------------------
नियोक्ता
की जिम्मेदारी नियोजकों को यह समझना चाहिए कि कार्यस्थल पर यौन
उत्पीड़न कर्मचारी के इज्जत से जीने और काम करने का अधिकार को छीन लेता है। उन्हें
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एक प्रणाली कायम की जाए जिससे यह स्पष्ट हो जाए कि यौन
उत्पीड़न की स्थिति में किसको और कैसे सूचित किया जाए, किस तरह की कार्यवाही की जाएगी, और जाँच में कितना
समय लगेगा।
----------------------------------------------------
नियोक्ता
के विरूद्ध 50 हजार की दंडनीय कार्यवाही
के प्रावधान महिलाओं
का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष)
अधिनियम, 2013 की धारा 26 में विधि निर्देशित है कि अधिनियम
के उपबंधों के अनुपालन के लिए शास्ति (1)
जहां कोई नियोजक,- (क) धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन
एक आंतरिक समिति का गठन करने में असफल रहेगा, (ख) धारा 13, धारा 14 और धारा 22 के अधीन कार्रवाई करने
में असफल रहेगा, और (ग)
इस अधिनियम के अन्य उपबंधों या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों का उल्लंघन करेगा
या उल्लंघन करने का प्रयास करेगा या उनके उल्लंघन को दुष्प्रेरित करेगा, वहां वह ऐसे जुर्माने से, जो पचास हजार रुपए तक का
हो सकेगा, दंडनीय होगा ।
(2)
यदि कोई नियोजक इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध में पूर्ववर्ती सिद्धदोष
ठहराए जाने के पश्चात् उसी अपराध को करता है और सिद्धदोष ठहराया जाता है तो वह (i)
उसी अपराध के लिए उपबंधित अधिकतम दंड के अधीन रहते हुए, पूर्ववर्ती सिद्धदोष ठहराए जाने पर अधिरोपित दंड से दुगुने दंड का दायी
होगा: परंतु यदि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसे अपराध के लिए,
जिसके संबंध में अभियुक्त का अभियोजन किया जा रहा है, कोई उच्चतर दंड विहित है तो न्यायालय दंड देते समय उसका सम्यक् संज्ञान
लेगा, (ii) सरकार या स्थानीय प्राधिकारी
द्वारा उसके कारवार या क्रियाकलाप को चलाने के लिए अपेक्षित, यथास्थिति, उसकी अनुज्ञप्ति के रद्द किए जाने या
रजिस्ट्रीकरण को समाप्त किए जाने या नवीकरण या अनुमोदन न किए जाने वा रद्दकरण के
लिए दायी होगा|